*एनटीपीसी कोरबा ने 43 वर्षों से भू विस्थापितों को अब तक नौकरी नहीं दीया जिससे दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर है अब करेंगे अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन प्रबंधन के खिलाफ*
एनटीपीसी कोरबा ने 43 वर्षों से भू विस्थापितों को अब तक नौकरी नहीं दीया जिससे दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर है अब करेंगे अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन प्रबंधन के खिलाफ
लगातार भूविस्थापितों ने एनटीपीसी प्रबंधन को अपनी समस्या को लेकर कई बार धरना प्रदर्शन आंदोलन के माध्यम से अपनी समस्या को बताने का प्रयास किया गया मगर कुंभकरणी नींद में सोए हुए एनटीपीसी के अधिकारियों के कान में जूं तक भी नहीं रेगा एसी में रहने वाले अधिकारी भी भु विस्थापितों की समस्या को समझने का प्रयास कभी नहीं अगर प्रयास करते तो इनकी समस्या का समाधान कब का हो चुका होता किए दिल्ली की केंद्र सरकार ने एनटीपीसी कोरबा के अधिकारियों को शासन से अनेकों सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं रात दिन ऐसी ऑफिस ऐसी गाड़ी ऐसी आवाज में रहते हैं इनको भू विस्थापितों की पीड़ा तकलीफ क्या लेना देना तभी भु विस्थापित 43 वर्षों से दर दर की ठोकर खाने के लिए मजबूर है एनटीपीसी आज प्लांट में यूनिट के ऊपर यूनिट तैयार कर रहा है और लाखों करोड़ों रुपए कमा रहा है और इस प्लांट से निकलने वाली धूल डस्ट राखड केमिकल की दुर्गंध से पूरा कोरबा जिला प्रभावित हो रहा है शहर में रहने वाले आम शहरी परेशान हो रहे हैं वही जल जंगल और जमीन वायु सभी पूरी तरह से प्रदूषित हो चुका है एनटीपीसी को सिर्फ अपनी प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए ध्यान रखा जाता है क्षेत्र के विकास के लिए भी गंभीर इनके अधिकारी नहीं होते हैं सिर्फ और सिर्फ प्रेस विज्ञप्ति जारी करते रहते हैं और अपना पीठ थपथपाते रहते हैं शासन प्रशासन के सामने आपको ज्ञात होगा एनटीपीसी का स्थापना कोरबा जिले में जब से हुआ है तब से आज तक एनटीपीसी एक भी नया राखड डैम का निर्माण या भूमि अधिग्रहण नहीं कर पाया है जो एनटीपीसी के अधिकारियों की नाकामी साबित करता है राखड डैम की हाइट को बड़ा बड़ा कर प्लांट से निकलने वाली राखड को पाइप लाइन के माध्यम से डाला जा रहा है कभी भी इस डैम से विनाशकारी दुर्दशा क्षेत्र की जनता को झेलना पड़ सकता है ।
आपको ज्ञात होगा 2006-7 मे घमोटा गांव के नजदीक एनटीपीसी का राखड डैम का एक हिस्सा टूट कर पूरे गांव वहां स्थित स्कूल में हसदेव नदी में चला गया था जिससे पूरा क्षेत्र राखड के प्रदूषण से पूरी तरह से प्रदूषित हो चुका था हसदेव नदी भी उससे अछूता नहीं था जिस हसदेव नदी को हम लोग जीवनदायिनी नदी के नाम से पुकारा जाता है पूरा हसदेव नदी का जल प्रदूषित हो चुका था राखड़ के बहाने से लगभग 15 वर्ष होने को है और आज तक एनटीपीसी ने एक भी नया राखड डैम का निर्माण भी नहीं कर पाया है इससे साफ जाहिर है कि एनटीपीसी के अधिकारी सिर्फ और सिर्फ कोरबा आकर अपना अपना समय निकाल कर और कुछ वर्षों के बाद ट्रांसफर लेकर दूसरे राज्य या पावर प्लांट यूनिट में चले जाते हैं और वही समस्या कोरबा की जस की तस पड़ी हुई है इस पर एनटीपीसी के अधिकारियों को गंभीरता पूर्वक विचार करते हुए एक रणनीति के तहत काम करने की आवश्यकता है यहां जो भी अधिकारी आता है अपना झोला भर कर चला जाता है उसे कोरबा की जनता से कोई सरोकार नहीं है और ना ही कोरबा जिले की विकास से उनको कोई सरोकार रहता है तभी हमारे 43 वर्षों से भटकने के लिए मजबूर हैं जिन की भूमि पर इतनी बड़ी पावर प्लांट खड़ा कर निर्माण किया गया है वही भू विस्थापित को नजरअंदाज करना ठीक नहीं है आए दिन कुछ न कुछ एनटीपीसी में भु विस्थापित अपनी लड़ाई को लड़ने के लिए प्रयास करते रहेंगे और एनटीपीसी के खिलाफ आंदोलन करते रहेंगे जब तक इनकी समस्या का समाधान नहीं होगा ऐसा भु विस्थापितों का कहना है।
16 अगस्त से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की चेतावनी एनटीपीसी प्रबंधन व जिला प्रशासन को दिया जा चुका है।
भूविस्थापितों ने बताया कि एनटीपीसी कोरबा द्वारा सन् 1978-79 में विद्युत प्लांट के निर्माण करने के लिए भूमि अधिग्रहण के समय जारी आम सूचना 4 सितम्बर 1979 के अनुसार कहा गया था कि राष्ट्रीय विद्युत ताप परियोजना निगम ने सिद्धांत: यह स्वीकार किया है कि प्रत्येक परिवार में एक व्यक्ति को जिनकी भूमि परियोजना हेतु अधिग्रहित की गई है, क्रमिक रूप से शैक्षणिक एवं अन्य योग्यताओं के आधार पर रोजगार प्रदान किया जावेगा। परियोजना का निर्माण कार्य जैसे-जैसे बढ़ता जावेगा, रोजगार के अवसर भी बढ़ते जावेंगे एवं तदनुसार लोगों को भी क्रमिक रूप से रोजगार प्रदान किया जावेगा। एक साथ सभी के लिए रोजगार मुहैया कराना असंभव है और न ही किसी परियोजना में ऐसा हुआ है।
उपरोक्त आम सूचना के आधार पर ग्राम चारपारा के भूविस्थापितों लक्ष्मण लाल कैवर्त, प्रहलाद केवट, पीकराम केवट, अर्जुन देवांगन, सुनील कुमार केवट, राजकुमार केवट, उमेंद पटेल तथा अनुप केवट द्वारा एनटीपीसी कोरबा में नौकरी के लिए विगत 43 वर्षों से प्रयास किया जा रहा है और आज उनकी उम्र भी बढ़ गई है अब नौकरी के लायक भी नहीं रह गए हैं। इस क्रम में भू-विस्थापितों को 15 दिवस में नौकरी देने के लिए विगत 4 जुलाई को कार्यपालक निदेशक एनटीपीसी कोरबा के नाम पत्र भेजा गया। मानव संसाधन के पूर्व प्रमुख सारंगी से मुलाकात कर चर्चा का प्रयास किया गया लेकिन मांगों पर चर्चा न कर अन्य विषयों पर उन्होंने बात की और भुविस्थापितों को दिग्भ्रमित करने का प्रयास भी किया गया। एनटीपीसी कोरबा प्रबंधन के द्वारा उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया और ना ही प्रबंधन द्वारा किसी प्रकार की जानकारी मुहैया कराया गया जिससे सभी भू-विस्थापित आक्रोशित हैं। उनके व्यवहार को लेकर
भूविस्थापितों ने बताया कि 16 अगस्त से हड़ताल की सूचना पर एनटीपीसी प्रबंधन द्वारा 8 और 10 अगस्त को नौकरी संबंधी बैठक बुलाई गई लेकिन नौकरी के विषय को छोड़कर दूसरी सभी मांगों पर चर्चा की गई। नौकरी देने पर सहमति नहीं होने से अब भूविस्थापितों ने 16 अगस्त को दोपहर 12 बजे से तानसेन चौक पर सहपरिवार अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठने का ऐलान कर दिया है। अब देखना है कि एनटीपीसी प्रबंधन इन गरीब परिवार के प्रति संवेदना दिखाती है या इनकी समस्या को नजरअंदाज करती है वह तो आने वाला समय ही बताएगा धन्यवाद