आदिवासी किसान काजू की खेती कर हो रहे मालामाल
कोरबा। जिले के किसान अब केवल परंपरागत खेती पर निर्भर नहीं है। कई तरह की फसलों की पैदावार कर वे आत्मनिर्भर बन रहे हैं। काजू की खेती ने भी किसानों की जिंदगी बदलने का काम किया है।
कोरबा के आदिवासी किसान न सिर्फ सफलतापूर्वक काजू की फसल उगा रहे हैं, बल्कि प्रोसेसिंग यूनिट के जरिए काजू को देश के अलग अलग हिस्सों तक पहुंचा रहे हैं। करतला का काजू अब कर्नाटक से लेकर कई राज्यों तक भेजा जा रहा है। जिले के ज्यादातर किसान धान की पारंपरिक फसल उगाते हैं, लेकिन करतला ब्लॉक के 2 हजार किसानों ने करीब 2000 एकड़ भूमि में काजू के 30 से 40 हजार पेड़ों का बागान विकसित कर लिया है। वह सालाना लगभग 100 टन तक काजू का उत्पादन करने में सक्षम हैं। इसकी शुरुआत 12 साल पहले 2011 में हुई थी। करीब 11-12 साल की मेहनत से किसानों ने अपनी सहकारी समिति का गठन कर बिना किसी सरकारी मदद के काजू प्रोसेसिंग यूनिट भी स्थापित कर ली है। शुरुआती दिनों में किसान कच्चा माल सप्लाई करते थे, लेकिन अब प्रोसेसिंग यूनिट में गांव की महिलाओं को भी काम मिला है। इससे किसानों का मुनाफा तो बढ़ा ही है, साथ ही साथ स्थानीय स्तर पर भी रोजगार के नए अवसर मिले हैं। किसान काजू के खेतों के रकबा भी साल दर साल बढ़ा रहे हैं। करतला का काजू पूरी तरह ऑर्गेनिक है। किसानों के पास कोई आधुनिक मशीन नहीं है। प्रोसेसिंग की काफी कुछ प्रक्रिया मैनुअल है। किसान को सालाना लगभग 1 लाख रुपये तक लाभ हो रहा है। पहले हम काजू उगाते हैं, इसके बाद किसानों से कच्चा माल खरीदते भी हैं। फिर से प्रोसेस करके बाहर के बाजारों में बेच देते हैं। पहले और अब की स्थिति में जमीन आसमान का अंतर है। किसानों की आय में बेहद वृद्धि हुई है। किसानों की अलग-अलग समितियों से लगभग दो 2000 किसान पंजीकृत हैं, जो 10 टन से 100 टन तक का काजू उत्पादन कर रहे हैं। काजू बेचने के लिए भी हमें परेशानी नहीं होती। हमें देश के अलग-अलग राज्यों से ऑर्डर मिल रहे हैं।