HO – TP Nagar Korba(CG)

finalLogo
Breaking News

*हिंदू धर्म और शास्त्रों में तुलसी विवाह का बड़ा महत्व बताया गया है,आज भी हमारे हिंदू रीति रिवाज के हिसाब से तुलसी पूजा और तुलसी विवाह बड़ी धूमधाम से सदियों से हमारे पूर्वज मानते आए हैं उसी का अनुसरण कर मित्तल परिवार भी अपने घर में मनाने जा रहे है*

0 हिंदू धर्म और शास्त्रों में तुलसी विवाह का बड़ा महत्व बताया गया है आज भी हमारे हिंदू रीति रिवाज के हिसाब से तुलसी पूजा और तुलसी विवाह बड़ी धूमधाम से सदियों से हमारे पूर्वज मानते आए हैं

मित्तल परिवार द्वारा

तुलसी विवाह

दिनॉक 23.11.2023

समय : संध्या 7:30 बजे

बरात

दिनाँक 23.11.2023 समय : संध्या 7:30 बजे

प्रसाद ग्रहण

दिनाँक 24.11.2023 समय: दोपहर 1.00 बजे से

विनीत

श्री अशोक कुमार मित्तल श्रीमती प्रमिला मित्तल एवं समस्त मित्तल परिवार

निवाम स्थल

मेन रोड कोरबा छत्तीसगढ़

0 तुलसी विवाह हिन्दू धर्म के अनुयायीयों द्वारा किया जाने वाला एक औपचारिक विवाह कार्यक्रम है जिसमें तुलसी नामक पौधे का विवाह शालीग्राम अथवा विष्णु अथवा उनके अवतार कृष्ण के साथ किया जाता है। हिन्दू धर्म में इसे मानसून का अन्त और विवाह के लिये उपयुक्त समय के रूप में माना जाता है।

0 हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को इस विवाह का आयोजन किया जाता है। इस तिथि से एक दिन पूर्व को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। कुछ स्थानों पर यह पांच दिनों की अवधि के लिए मनाया जाता है, जो कार्तिक महीने की पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है

0 एक चौकी पर तुलसी का पौधा और दूसरी चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करें. इसके बाद बगल में एक जल भरा कलश रखें, और उसके ऊपर आम के पांच पत्ते रखें. तुलसी के गमले में गेरू लगाएं और घी का दीपक जलाएं. फिर तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल का छिड़काव करें और रोली, चंदन का टीका लगाएं

0 इस विवाह का आयोजन भगवान के शालीग्राम अवतार के साथ होता है. मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, तुलसी विवाह हमेशा देवउठनी एकादशी के दिन किया जाता है. इस दिन तुलसी माता और शालिग्राम भगवान का विवाह किया जाता

0 वृंदा ऐसे बनी तुलसी

धार्मिक कथा है कि वृंदा पति के वियोग को सहन नहीं कर पाई और सती हो गई. कहा जाता है कि वृंदा की राख से जो पौधा उत्पन्न हुआ उसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया. जिसके बाद भगवान विष्णु ने यह प्रण लिया कि वे तुसली के बिना भोग ग्रहण नहीं करेंगे. इसके साथ ही उनका विवाह शालीग्राम से होगा.

तुलसी विवाह की यह कथा है बेहद खास