HO – TP Nagar Korba(CG)

finalLogo
Breaking News

*शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, प्रो. पाण्डेय, शासकीय ग्राम्य भारती महाविद्यालय हरदीबाजार में नम आखों से याद किए गए कारगिल के समस्त शहीद*

कोरबा,

प्रतिवर्षानुसार विजय प्रतीक के तौर पर 26 जुलाई को मनाया जाने वाला ‘कारगिल विजय दिवस’, साल 1999 के द्रास की दुर्गम पहाड़ियों में भारतीय सेना और पाकिस्तानी सेना के बीच हुए भीषण युद्ध के दौरान अपनी प्राणों की आहुति देकर देश की संप्रभुता की रक्षा करने वाले भारतीय सशस्त्र बलों के साहस और बलिदान को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। इस वर्ष कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती पर जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख अध्ययन केंद्र के तत्वावधान में सरकार, सशस्त्र बलों और नागरिकों द्वारा अनेकों स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम व समारोह आयोजित किए जा रहे हैं । इसी कड़ी में भारतीय सेना के रणबांकुरों के अदम्य साहस की इस वीरगाथा को नमन करने के लिए शासकीय ग्राम्य भारती महाविद्यालय हरदीबाजार में विचार-गोष्ठी एवं मौन-धारण कार्यक्रम आयोजित किया गया। महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. शिखा शर्मा के संरक्षण एवं मार्गदर्शन तथा महाविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग के विभागाध्यक्ष तथा राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी प्रो. अखिलेश पाण्डेय के नेतृत्व में आयोजित इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापकों, शैक्षिकेत्तर कर्मचारियों एवं समस्त छात्र-छात्राओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बौध्दिक संगोष्ठी की भूमिका रखते हुए प्रो. पाण्डेय ने कहा कि कारगिल विजय दिवस मनाने का उद्देश्य, देश के प्रतिभावान युवाओं में देशभक्ति और राष्ट्र-प्रेम की सर्वोच्च भावनाओं का संचार करने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के द्रास सेक्टर के कारगिल की भौगोलिक-सामरिक संरचना एवं विषम जलवायु की परिस्तिथियों से भारतीय युवाओं को अवगत कराना है ; जिसपर सन् 1999 में अधिकार करने की पाकिस्तान की नापाक कोशिशों को खतरनाक भूभाग, विषम मौसम की स्थिति, 18,000 फीट से अधिक की ऊंचाई और शुरुआत में प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी भारतीय वीर सैनिकों ने अपने अतुल्य शौर्य और पराक्रम से ना केवल नाकाम किया था ब्लकि उस क्षेत्र की सर्वोच्च चोटियों में से एक, टाइगर हिल पर से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़कर जीत का परचम ऊंची-ऊंची चोटियों पर लहराया था। तत्पश्चात महाविद्यालय के प्राणीशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष एवं रा.से.यो. की महिला इकाई की कार्यक्रम अधिकारी श्रीमती अंजली कंवर ने कारगिल युद्ध के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कारगिल विजय दिवस का इतिहास 1998-99 की सर्दियों से जुड़ा है, जब पाकिस्तानी सेना ने गुप्त रूप से भारतीय सीमा में घुसपैठ की और ‘ऑपरेशन बद्र ‘ के तहत नियंत्रण रेखा (एलओसी) के भारतीय हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया। उनका उद्देश्य क्षेत्र में भारत की सैन्य स्थिति को कमज़ोर करना और कश्मीर और लद्दाख के बीच संपर्क को काटना था। तब भारत सरकार ने घुसपैठियों के खिलाफ़ ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत सेना की टुकड़ियों को जुटाकर जवाबी कार्रवाई की थी । बाद में, ‘ ऑपरेशन सफ़ेद सागर’ के तहत, भारतीय वायु सेना युद्ध में शामिल हुई, जिसने हवाई सहायता और लॉजिस्टिक्स सहायता प्रदान की, इसके बाद भारतीय नौसेना ने ‘ऑपरेशन तलवार’ चलाया , जिसने दुश्मन सेना पर दबाव बना और अंततः भारत को एक ऐतिहासिक जीत मिली। इसके अतिरिक्त महाविद्यालय के ग्रंथपाल श्री अशोक कुमार मिश्रा ने शहीदों का स्मरण करते हुए कहा कि कारगिल युद्ध में भारत को जीत बहुत बड़ी कीमत पर मिली थी, जिसमें 500 से ज़्यादा सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। साथ ही उन्होंने परमवीर चक्र (मरणोपरांत) कैप्टन विक्रम बत्रा, परमवीर चक्र (मरणोपरांत) लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, परमवीर चक्र नायब सुबेदार योगेन्द्र सिंह यादव, परमवीर चक्र राइफलमैन संजय कुमार, महावीर चक्र (मरणोपरांत) मेजर राजेश सिंह अधिकारी, महावीर चक्र (मरणोपरांत) कैप्टन अनुज नायर एवं कारगिल युद्ध के अन्य उल्लेखनीय नायकों के योगदान से सभा को अवगत कराया। कार्यक्रम के अंत में शहीदों की स्मृति में मौन-धारण किया गया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय, भौतिकशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. के. के. दुबे, गणित विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एम. के. वर्मा, रसायनशास्त्र विभाग के प्राध्यापक डॉ. एस. कृष्णमूर्ति, हिन्दी विभाग के प्राध्यापक श्री शिव कुमार दुबे, गणित विभाग के प्राध्यापक श्री विक्रम कुमार, वनस्पति विज्ञान की प्राध्यापक डॉ. रानू राठौर एवं अन्य प्राध्यापकों ने अपनी गरिमामय उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। कार्यक्रम को सफल बनाने में रा.से.यो. के अखिलेश कुमार, अभिषेक सोनी, अनीश कुमार, दुर्गेश पटेल, भावना कुंभकार, धारिता पटेल, आँचल राठौर, तथा दिव्यानी साहू एवं. रा.कै.को. की नेहा प्रजापति, मीनाक्षी राठौर, लक्ष्मी राठौर, वर्षा कश्यप एवं अन्य कैडेटों का योगदान सराहनीय रहा।